Saturday, 22 April 2017

खेती किसानी मतलब घाटे का सौदा..

आपके ऊपर लाखों का कर्ज हो और आपकी साल भर की कमाई चोरी हो जाए और अगर यह साल दर साल हो रहा हो तब आपकी क्या हालत होगी? बस ऐसा ही किसानों के साथ पिछले कई सालों से हो रहा है। सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि 67 फीसदी किसान कर्ज के लिए स्थानीय महाजन पर निर्भर हैं। ये लोग 24 से 60 फीसद सालाना की दर से ब्याज देते हैँ। यह दर हमारे आपके होम लोन और कार लोन से पांच गुना ज्यादा है। किसानी इस दौर का सबसे जोखिम भरा रोजगार है। रबी की फसल को किसानोँ के लिए 'पिता का कंधा' माना जाता है। खरीफ की फसल खराब होने पर भी किसान की हिम्मत पस्त नहीं होती है क्योंकि उसे पता होता है कि चंद महीनोँ बाद ही उसके खेत मेँ गेहूं की सुनहरी बालियां होँगी जो सारा कर्जा पाट देँगी।

योगी सरकार ने अभी पिछले दिनों 1625 रूपये प्रति कुंतल के हिसाब से गेहूँ खरीदने का फैसला किया। पिछले साल सपा सरकार ने भी 1625 रूपये की दर से ही गेंहूँ खरीदा था। उसके पहले रेट करीब 1525 रूपये कुंतल था। 2013-14 में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1400 रूपये था। 2010 -11 में करीब 1120 रूपये प्रति कुंतल के हिसाब से गेंहू खरीदा था। यानी हर साल करीब 100 रूपये कुंतल या उससे कुछ अधिक गेहूं का दाम प्रति कुंतल के हिसाब से बढ़ता है। बाकी फसलों का भी यही हाल है। अपने यूज की और चीजों से गेहूं की तुलना करने पर आपकों समझ आएगा कि खेती किसानीघाटे का सौदा क्यों बन गया है। ये सरकारी रेट है जबकि अधिकतर किसान डायरेक्ट सरकारी मंडियों तक पहुंच ना रखने की वजह से न्यूनतम समर्थन मूल्य से 300 से 400 रूपये कम पर ही गेहूं बेचते हैं। यही उन वजहों में से एक है जो हमे कई बार महाराष्ट्र से लेकर बुंदेलखंड तक खेती का भयावह चेहरा दिखाती रहती है।

मोदी सरकार के राज में किसानों की आत्महत्या रुकने की बजाय और बढ़ी है। पांच साल में किसानों की आय दोगुनी करने के दावों के बीच किसानों की बदहाली की एक बेहद चिंताजनक तस्वीर पिछले दिनों सामने आई। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक केंद्र में नई सरकार आने के बाद किसानों की आत्महत्या में 42% की बढ़ोतरी हुई है। 30 दिसंबर 2016 को जारी एनसीआरबी के रिपोर्ट 'एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015' के मुताबिक साल 2015 में 12,602 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने आत्महत्या की है।



उत्तर प्रदेश के चुनाव में किसानों की बदहाली मुद्दा खूब उठा। सतारूढ़ बीजेपी ने अपने वादे के मुताबिक़ किसानो का कर्ज माफ़ भी किया है लेकिन सिर्फ कर्जमाफ़ी ही किसानो की समस्याओं का समाधान होता तो यूपीए के काल में कर्जमाफ़ी से किसानों की स्थिति बदल जाती और आत्महत्या रुक जाती। खेती किसानी के प्रति सरकारों का रवैया देखकर यही लगता है कि सरकार किसी भी दल या विचारधारा की हो, वो किसान विरोधी ही होती है। असल में दिक्कत हमारी नीतियों को लेकर है। हमारी सरकारों ने कभी खेती पर ध्यान ही नहीं दिया। खेती को लेकर किसी विस्तृत योजना को अमलीजामा पहनाया ही नहीं गया। आज हमे ऐसी योजनाओं को लागू करने की जरूरत है। जो हमारे अन्नदाता के आत्मविश्वास को जगाकर खेती को मुनाफे वाला रोजगार बना सके।

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