उसका पेट भूख के मारे ऐंठ रहा है। कुछ सालो पहले वह खाये या ना खाये लेकिन उसको कुछ स्वार्थी रिश्ते खाने को कह भर देते थे। आज वह किसी से भूखे होने की बात नही कहेगा। नल के पास जाकर आँखो मे पानी का छींटा मार कर चुपचाप भीड़ से निकल आयेगा। क्योकि वह ढ़ोगी है खुद दोहरा चरित्र वाला है उसे लगता है की पानी के छींटे उसकी बदनसीबी दूर कर देगे या फिर दुनिया उसकी उलझने देख ना पायेगी साथ ही उसमे ढेर सारी सम्भावनाये ढूंढ़ निकालेगी।
उसने खुद तो कोई नौकरी - चाकरी की नहीं। असले में धनपशुओ की गुलामी करना उसके वश की बात नही। क्या वह हथियार उठायेगा या फिर वो अपनी बदनसीबी से यूँ ही जूझता रहेगा। नही वह हथियार उठाके किसी ना किसी को तो मारेगा फिर वो भी तो इंसान ही होगा? नही वह कैसे किसी का खून बहा सकता है फिर क्या वह यूँ ही खुद पल पल मरता रहेगा। यह सोचते - सोचते उसे जोरों की भूख लगी लेकिन इस समय वह किससे अपने भूखे होने की बात कहेगा?
वह बेरोजगार है, अकर्मण्य है, नालायक और आवारा है क्योकि वह कुपमगज समाज के बनाये तौर तरीको की परवाह नही करता। झूठे खाँचो मे टूटे इस संसार को जोड़ने के सपने देखता है। वो चाहता है सभी के पास इतना भर जरुर हो जिससे हर कोई अपनी न्यूनतम आवश्यकताये पूरी कर सके। वह कुछ और नही करता इन्ही सुनहरे ख़्वाबो को हकीकत बनाने के लिये पल पल तड़पता है। परन्तु वह कर भी क्या सकता है?
वह इस समय परिवार से कटा - कटा रहता है। वह दिन भर कमरे में चुपचाप पड़ा रहता है। खायेगा भी या नही, उसे कोई नही पूँछता। क्या उसके प्रति किसी का फर्ज नही या फिर उसने खुद फर्जो को नही निभाया? निराशा के अथाह जल मे वह अकेला तैरता रहता है। वह बड़ा अकेला महसूस करता है।
कोई नही है, कोई मददगार नही उसका। वह अपने तर्क, बुद्धि, विवेक सहित अपने मे सिमटता जाता है। उसका उदार, सहिष्णु, तर्कवादी मन सब कुछ संकुचित होता जाता है। वह रिक्त होता जाता है। अपने भविष्य की आशंका से उसका ह्दय काँप उठता है। मानो वह एक भयावह मृत्यु की प्रतिक्षा कर रहा है।
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