जंतर मंतर पर अनशन कर रहे
लोगों को देखकर खुद पर गुस्सा आता है। मालूम नहीं हम किस तरह का समाज बनते और
बनाते जा रहे है। एक तरफ तमिलनाडु के किसान तो दूसरी तरफ सेना के पूर्व सैनिक है।
लोग और भी बहुत है,जो अपनी मांगो
को लेकर जंतर मंतर पर डटे है। बिना किसी समर्थन के भी यहां लोग कई -
कई महीनों से बैठे है।
किसानों के नेता पी अय्यककन्नु यहां हर आने जाने वाले से बात करते हैं। वो कहते है
कि "विधायक की आय 70 के दशक में 950 रूपये थी और आज 2017 में 55 हजार रूपये हो
गई है
तो फिर
इसी अनुपात
में हमारी आमदनी क्यों नहीं बढ़ी?"
एक और किसान जी. महादेवन अपनी कहानी बाते
हुए आगे कहते हैं कि "मेरी उम्र 62 साल है। पिछले साल मेरी पत्नी ने तब आत्महत्या कर ली थी, जब बैंक के कर्मचारी ने मेरे घर पर आ कर कहा था कि आपने 6 साल पहले जो एक लाख रुपए का लोन लिया था। जो अब वो कई गुना
बढ़ गया है। अगर पैसे जमा नहीं कराए तो जमीन और घर नीलाम कर दिए जाएंगे। यह बात
सुन कर पत्नी सदमे में चली गई। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने पत्नी को मृत घोषित
कर दिया"
ये लोग केंद्र
सरकार से 40 हजार करोड़ रूपये का सूखा राहत पैकेज देने की मांग कर रहे है। फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाना भी इनकी मांगों
में शामिल है। इसके अलावा इनकी सबसे विवादित मांग में कावेरी जल विवाद को हल करना
भी है। जिसकी वजह से इनका सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। कावेरी जल विवाद एक तरह से
दो राज्यों कर्नाटक और तामिलनाडु के बीच अस्मिता की लड़ाई बन गया है। जो कोर्ट के
कई बार हस्तक्षेप के बावजूद सुलझ नहीं पाया। पी. अय्यककन्नु कहते है कि "कर्नाटक हाईकोर्ट के 7 बार आदेश देने के बावजूद भी सरकार जल विवाद के समझौते को लागू नहीं कर रही"
आंदोलन के व्यापक बनने में किसानों की भाषा भी आड़े आ रही है वरना उत्तर भारत के किसान भी इनके साथी बन सकते है। कावेरी जल विवाद की वजह से इनका संकट और गहरा गया है। कर्नाटक के चुनाव करीब है जहां कांग्रेस सत्ता में है इसलिए राहुल गांधी ना कुछ कह सकते हैं ना चुप रह सकते हैं। दिल्ली के छोटे और बड़े दोनों दरबारों में भी इन किसानों की सुनवाई नहीं हो रही है। क्या इन्हें अब भी किसी प्रदर्शनकारी की खुदकुशी का ही इंतजार है?
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