Thursday, 31 March 2016

लाल फ्रॉक वाली लड़की


पिछले 10 मिनट से मेरी नजर छुप - छुप के उसे निहार रही थी। उसका उदास चेहरा, बोझिल आँखे खुद में वो गुमसुम सी पड़ी पता ना किन ख्यालो में खोयी थी। उन दिनो मै खडूस हुआ करता था या यूँ कह सकते है कि स्वार्थी था जो हर किसी को उस समय काल में होना भी चाहिये। वजह ये भी हो सकती है कि ये दुनिया जो रहस्यो और रामांचो से भरी पड़ी है उस तक मेरी नजर अभी पहुँची ही नही थी। 

वो छोटे कस्बे का छोटा सा मोहल्ला था जहाँ मै अपने जैसो का साथ पाने के लिए गाँव से चलाया आया करता था और नाम ट्यूशन का दिया गया। वो लड़की जो रेड कलर के फ्राक में किसी परी से कम नही लगती थी फिर भी मुझे उसका उदास चेहरा अपनी ओर खिचता था कि आखिर वो ऐसी क्यों रहती है जो कुछ मै समझ रहा था और नही भी। 

वो कुछ कहना चाहती थी मुझसे। इसका एहसास मुझे तब हुआ जब उसने मुझे एक खत देने की कोशिश की। पहले प्यार का पहला खत पाकर उन दिनो मेरी खुमारी सातवें आसमान पर थी एक जुनून था ट्यूशन पढने जाने का या कि उस रेड फ्राक वाली को देखने का। धीरे धीरे ख़तों की अदला बदली बढती गयी और यकीन जानिये रात में पढाई के घंटे भी बढने लगे। उससे सिर्फ सहानुभूति थी या प्यार ये मै कभी समझ नही पाया।

 बहुत तकलीफ झलकती थी उसके सीधे सादे शब्दो में। उसके मम्मी पापा अक्सर झगड़ते रहते थे। उसके अकेलेपन का किसी को अहसास नही था शायद मुझ में अपना एक दोस्त ढूढ़ती थी जो उसको समझ सके, जो उसके अकेलेपन को बाट सके और जो उसे भावनात्मक सम्बल दे सके.......(जारी)
(इश्क में शोध की पहली किस्त)‪

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